शिवमय श्रीमद भागवत कथा में उमड़ा आस्था का सैलाब, भगवान श्रीकृष्ण और माता रुकमणी की सजाई झांकी

सीहोर। जिनका मन शुद्ध और पवित्र है उन्हीं को परमात्मा की प्राप्ति होती है। निर्मल मन से ही ईश्वर की अनुभूति की जा सकती है। ईश्वर को प्रेम चाहिए वह निश्छल प्रेम के भूखे हैं। कोई व्यक्ति ईश्वर के प्रति यदि छल कपट अथवा क्षुद्र मन रखकर उसे प्राप्त करना चाहता है तो यह कदापि संभव नहीं है। उक्त विचार शहर के बड़ा बाजार स्थित अग्रवाल धर्मशाला में अग्रवाल महिला मंडल के तत्वाधान में जारी सात दिवसीय शिवमय श्रीमद भागवत कथा के छठवे दिवस अंतर्राष्ष्ट्रीय कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने कही। उन्होंने कहा कि भगवान की प्राप्ति के लिए मन से कपट निकालकर भक्ति करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आप लोगों तो कथा का श्रवण करने के लिए अंदर बैठे हुए है, लेकिन भवन के बाहर सड$क, ओटले, गली और घरों में बैठे हुए सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु मात्र माइक की आवाज को केन्द्र में रखते हुए भगवान पर विश्वास कर भक्ति में मग्र है। इसको भक्ति की चरम सीमा कहते है। ईश्वर के नाम का ध्यान करने के लिए जहां पर भी स्थान मिले उसको ग्रहण करना चाहिए। कथा स्थल पर ही विठलेश सेवा समिति की नगर ईकाई के द्वारा भोजन प्रसादी की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा अन्य समाजसेवी भी अपनी ओर से यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं को चाय, नश्ते, पेयजल आदि की व्यवस्था कर रहे है।
क्षमा एक-दूसरे को निकट लाने का पर्व –
पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि इन दिनों जैन समाज के द्वारा क्षमा पर्व मनाया जा रहा है क्षमा एक-दूसरे को निकट लाने का पर्व है। यह एक-दूसरे को अपने ही समान समझने का पर्व है। क्षमापर्व जैन धर्म में मनाया जाने वाला ऐसा पावन त्योहार है जो समूचे देशवासियों को सुख-शान्ति का संदेश देता है। यह पावन पर्व सिर्फ जैन समाज को ही नहीं बल्कि अन्य सभी समाज जन को अपने अहंकार और क्रोध का त्याग करके धैर्य के रथ पर सवार होकर सादा जीवन जीने, उच्च विचारों को अपनाने की प्रेरणा देता है। जियो और जीने दो का यही लक्ष्य है।
भगवान श्रीकृष्ण और माता रुकमणी की सुंदर झांकी सजाई गई –
मंगलवार को कथा के छठवे दिवस भगवान श्रीकृष्ण और माता रुकमणी की सुंदर झांकी सजाई गई थी, इस मौके पर भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने भगवान के विवाह का वर्णन किया। जब हमारे सत्कर्मों का अभिमान नष्ट हो जाता है। जब धरती पर अधर्म बढ़ा है। तब भगवान ने अवतार लेकर अपने भक्तों को तारा है। कथा सुनने से पापों का नाश होता है। कथा भगवान के स्वरूप का ज्ञान कराती है। कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के कई प्रयास में असफल होने के बाद अक्रूरजी को मथुरा में मेला उत्सव के बहाने कृष्ण और बलराम को लेने भेजा। गोकुलवासियों के मना करने के बाद भगवान कृष्ण उन्हें समझाकर मथुरा पहुंचते हैं। कंस दोनों भाईयों को मारने की योजना बनाकर मदमस्त हाथी छोड़ देता है। भगवान उसका वध कर देते हैं। रुक्मणी विवाह का प्रसंग भी सुनाया गया। उसके बाद कृष्ण रुक्मणी की सुंदर झांकी सजाई। इस संबंध में जानकारी देते हुए अग्रवाल महिला मंडल की अध्यक्ष श्रीमती ज्योति अग्रवाल ने बताया कि बुधवार को कथा का विश्राम किया जाएगा। इस मौके पर कथा दोपहर दो बजे से शाम तक होगी और उसके पश्चात सादगी के साथ यात्रा निकाली जाएगी, उन्होंने क्षेत्रवासियों से अपने-अपने घरों से पुष्प वर्षा कर यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं के स्वागत की अपील की है।