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तलाक की बढ़ती घटनाओं को लेकर भारत भ्रमण पर निकली राजस्थान की विमला, आष्टा में हुआ कुछ इस तरह से स्वागत

संजय जोशी, आष्टा
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घर-परिवार में लगातार बढ़ते तलाक और इसके कारण टूटते परिवारों को समझाईश देने एवं इसके लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए राजस्थान के जोधपुर की विमला पदयात्रा पर निकली हैं। विमला का कहना है कि जिस तरह से आजकल घर-परिवार तलाक के कारण टूट रहे हैं, युवा पाश्चात्य संस्कृति को ज्यादा अपना रहे हैं इससे वह आहत है और इसके लिए वह भारत भ्रमण पर निकली हैं। यदि उसके कारण कोई एक परिवार भी ऐसा करनेे सेे बचता है तो वह अपनी यात्रा को सार्थक मानेेंगी।
राजस्थान के जोधपुर के समीप रहने वाली विमला ने ग्रेजुएशन किया है। 3 भाई-बहनों में सबसे बड़ी 28 साल की युवती ने जब समाज में बढ़ते परिवार के विघटन की घटनाओं को देेखा तोे वेे इससे आहत हुईं औैर 2 साल पहले उन्होंने लोगों में जनजागृति फैलाने के उद्देश्य से इसकी मुहिम शुरू की। इस दौरान उन्होेंने बैनर-पोस्टर छपवाकर जहां लोगों में जागृति फैलाने का काम किया तो वहीं ऐसे लोेगों को समझाईश भी दी, जिनके घरोें में तलाक हो रहे थे। इस मुहिम में जहां उनको सराहना मिली तो वहीं इसका विरोध भी झेलना पड़ा, लेकिन इससे उनका हौसला टूटा नहीं, बल्कि उन्होंने खुद को मजबूती के साथ खड़ा किया।
विमला से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि आए दिन सनातन धर्म के पवित्र बंधन को जिस प्रकार से अदालत में ले जाकर उसकी छवि को धूमिल किया जा रहा है उससे वह काफी आहत हैं, दुखी हैं। उनका कहना है कि जिस प्रकार से महिलाएं पुरुषों पर आरोप लगाकर उनसे 20-20, 30-30 लाख रुपए अदालत के माध्यम से लेती हैं, जिसमें पति की कीमत लगाई जाती है और उसे बेच दिया जाता है। यह एक तरह का व्यापार ही हुआ। जहां एक और पति को बेचकर उसकी मुंह मांगी कीमत वसूलने में महिला के परिजन भी उसका सहयोग करते हैं वह बेहद निराशा करने वाला है। शादी जैसे पवित्र बंधन को जिस प्रकार से लगातार तोड़ा जा रहा है। पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करके महिलाएं अपनी मनमानी कर रही हैं उससे वे दुखी हैं। ऐसा समाज आगे चलकर आने वाली पीढ़ियोें को क्या देगा हमें यह सब सोचना होगा। आखिर हम और हमारा समाज कहां जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि लिव इन रिलेशन, शादी के पूर्व ही लड़कियां दोस्त बनाकर खुद शारीरिक शोषण कराने को उतारू हो जाती हैं। जिन माता-पिता ने अपने पुत्र-पुत्री को पाला, उन्हें पढ़ा-लिखाकर इस लायक बनाने का प्रयास किया कि वह एक अच्छे नागरिक बने, लेकिन बच्चों की एक छोटी सी गलती उनके जीवन को नर्क बना रही है। वे लाचार हो जाते हैं, जब उनके अपने ही बच्चे उनकी बातों को नजरअंदाज करते हैं। इन सब बातों से हम आए दिन परिचित हैं और समाज में यह घटनाएं लगातार हो रही हैं। इन घटनाओं को रोकने के लिए लोगों में जन जागृति फैलाने के लिए मैं पैदल ही भारत भ्रमण पर निकली हूं। लोगों से अपनी बात कहती हूं यह मेरा एक छोटा सा प्रयास है।
कानून मेें बदलाव, लेकिन लोगों को बदलना होेगा-
वैसे तो कानून में काफी बदला हुआ है। ऐसे मामले को लेकर यदि कोई मामला आता है तो पहले उसे परिवार परामर्श केंद्र में भेजा जाता है। परिवारों के बीच मध्यस्थता करने का प्रयास किया जाता है और यदि कोई भी हठधर्मिता अपनाता है तो फिर मामला अदालत में दर्ज होता है। फिर दोषी कोई भी क्यो न हो, भुगतना सभी को पड़ता है। विशेषकर उन निर्दाेष बच्चों को जिनका कसूर कुछ भी नहीं होता। कभी अदालत मां को सौंपने का आदेश करती तो कभी पिता को परवरिश के लिए सुपुर्द करती है, लेकिन उन मासूमों के मन को कोई नहीं पढ़ता कि उनको किस बात की सजा दी जा रही है। जैसे-जैसे हम आधुनिकता और उच्च शिक्षा नौकरी, व्यवसाय में आगे बढ़ रहे हैं उतना ही हमारा सामाजिक पतन भी होता जा रहा है। आधुनिकता की दौड़, चकाचौंध में हम अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से भागने लगे हैं। हम अपना ईगो इतना अधिक बढ़ा लेते हैं कि उसके आगे सारी अच्छी सामाजिक बातें रीति-रिवाज, मान-मर्यादा परिवार की इज्जत सब बातें बोनी नजर आती हैं। इस पीड़ा को जिसने भोगा है वह अच्छे से जानता है कि परिवार विघटन कितनी बुरी बात है। जब विमला से पूछा गया कि आप अकेली युवती होकर अकेले ही निकली हैं आपको डर नहीं लगता तो उनका कहना है कि जिस काम के लिए मैं निकली हूं उसमें डर कैसा। यदि मेरे इस प्रयास से एक भी घर टूटने से बचता है तो मेरी यात्रा सार्थक हो जाएगी। हां एक बात जरूर है सभी लोग बुरे नहीं हैं कुछ लोग बुरे हैं, जिनसे मेरा सामना भी हुआ है। उससे ज्यादा अच्छे लोगों का साथ भी मिला है जो सदैव मेरा मार्गदर्शन और प्रेरणा देते रहते हैं। मेरा सहयोग करते रहते हैं, जिसमें पुरुष, युवक-युवती, महिलाएं और बुजुर्ग सभी लोग शामिल हैं। उनका भरपूर सहयोग मुझे मिल रहा है।
विमला आगे बताती हैं कि अभी तक मुझे कहीं कोई परेशानी नहीं हुई है। हां एक बात जरूर है कोई मदद के लिए आगे आता है और मुझे एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक पहुंचने में मदद कर रहा है। यह ईश्वर की लीला कहूं या समाज का मेरे प्रति सम्मान है। हां कुछ लोग मेरी बातों से गुस्सा भी होते हैं और चिढते भी हैं, खीजते भी हैं, लेकिन मुझे मेरा काम करना है मैं इस पर ध्यान नहीं देती हूं। विमला के पास एक बैग है, जिसमें कुछ पैसा जो लोगों द्वारा सहायता स्वरूप दिया जाता है। एक झोला है जिसमें उनके कपड़े रहते हैं और हाथ में झंडा, एक मोबाइल है। बस इसके अलावा उनके पास में कुछ नहीं है। जो साथी जितनी दूर तक पैदल चलकर उनकी सहायता करता है उनका वह धन्यवाद करती हैं और आगे बढ़ती चली जाती हैं। मध्यप्रदेश में पहुंचने पर राष्ट्रीय स्वयं संघ के सदस्यों को जब इस बारे में पता चला तो विमला को उनकी मंजिल तक पहुंचने में मदद करने का एक छोटा सा प्रयास किया। वह अपने कार्यकर्ताओं को आने वाले गांव, शहर, कस्बे के बारे में बताते जाते हैं और विमला को कोई परेशानी ना हो इसका ध्यान रखते हुए उन्हें उनकी मंजिल की ओर बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। विमला एक दिन में 20 से 30 किलोमीटर प्रतिदिन चलती है और ऐसे परिवार में रात्रि विश्राम करती हैं जो परिवार के साथ उन्हें रात्रि विश्राम के लिए आमंत्रित करते हैं। रात्रि के पूर्व वह अपनी यात्रा स्थगित कर देती हैं और सवेरे 6.00 बजे यात्रा के लिए निकल पड़ती हैं। बारिश या गर्मी, कोई भी उनके कदमों को बांधे नहीं रख सका है। विमला तीज-त्यौहार को भी मानती हैं और व्रत उपवास भी इस दौरान उनके जारी हैं। दिन में एक समय ही भोजन करती हैं, बाकी समय स्वल्प आहार लेकर जो भी कोई श्रद्धा और प्रेम से आग्रह कर खिलाते हैं खा लेती हैं। ऐसे ही यदि कोई स्वत से ही आर्थिक सहायता करना चाहता है तो स्वीकार करती हैं। किसी से कोई सहायता कभी नहीं मांगती।
आष्टा में हुआ इस तरह से उनका स्वागत-
आष्टा नगर संघ के सदस्यों को जब जानकारी लगी, तब वह उन्हें लेने करीब 10 से 12 किलोमीटर दूर पहुंचे और उनके साथ आष्टा तक पैदल चलकर आए। जब इस बारे में लोगों को जानकारी लगी तो किसी ने उनसे आग्रह किया कि हमारे यहां चलकर स्वल्प आहार करें, तो किसी ने रात्रि विश्राम का आग्रह किया। विमला ने सभी का आग्रह स्वीकार किया और दोनों ही परिवारों में पहुंची। उसके बाद सवेरे फिर निकल पड़ी। उनकी यह यात्रा सतत जारी है और वे इसके लिए पूरे भारत का भ्रमण करेंगी।

 

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