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पाटजात्रा पूजा विधान के साथ 75 दिवसीय बस्तर दशहरा का आज से होगा शुभारंभ

जगदलपुर
ऐतिहासिक 75 दिवसीय बस्तर दशहरा पर्व का शुभारंभ हरियाली आमावस्या तिथि 28 जुलाई को पाटजात्रा पूजा विधान के साथ होगा। ग्राम बिलोरी के ग्रामीणों द्वारा आज दंतेश्वरी मंदिर के सिंहद्वार के समक्ष बिलोरी के जंगल से साल की लकड़ी लेकर पहुंचे। रियासत कालीन परंपरानुसार रथ निर्माण करने वाले कारिगर, मांझी-मुखिया, चालकी की उपस्थित में पाटजात्रा पूजा विधान संपन्न होगा।

बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के पूजा अनुष्ठान का पर्व रियासत कालीन बस्तर दशहरा की पहली पूजा विधान के लिए लाई गई लकड़ी को नाली के किनारे रख दिया गया है। पूजा के लिए लाई गई लकड़ी को सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं होने से इस लकड़ी पर कुत्ते गंदगी करते हैं, इसके अलावा इस लकड़ी पर अनजाने में एक सामान्य लकड़ी मानकर इस पर पैर रख देते हैं। बस्तर दशहरा कमेटी के जिम्मेदारों को चाहिए कि पूजा की लकड़ी को सुरक्षित रखने के लिए चारों तरफ से घेराकर उसे उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए व्यवस्था देना चाहिए।

बस्तर के ऐतिहासिक दशहरा पर्व की शुरूआत 1408 में राजा पुरुषोत्तम देव द्वारा प्रारंभ की गई थी। दशहरा बस्तर की आराध्य मां दंतेश्वरी के पूजा अनुष्ठान का पर्व बस्तर दशहरा की शुरूआत हरेली अमावस्या से होती है। इसमें बिलोरी के जंगल से लाई गई लकड़ी जिसकी पूजा की परंपरा पाटजात्रा पूजा विधान कहलाती है। वस्तुत: पाटजात्रा पूजा विधान बस्तर दशहरा में बनाये जाने वाले दुमंजिला विशाल रथ के निर्माण में उपयोग की जाने वाले परंपरागत औजारों की पूजा है। इसमें जिस लकड़ी की पूजा की जाती है, उसे स्थानीय बोली में ठुरलू खोटला कहा जाता है। इस लकड़ी से विशालकाय हथौड़ा बनाया जायेगा, जिसका उपयोग बस्तर दशहरा केदुमंजिला विशाल रथ के पहिए के निर्माण के दौरान हथौड़े के रूप में किया जाता है। इस लकड़ी के साथ ही अन्य परंपरागत रथ निर्माण के औजारों की भी परंपरानुसार पूजा रथ निर्माण करने वाले ग्रामीणों के द्वारा की जाती है। पूजा विधान में अन्य पूजा सामग्रीयों के अलावा विशेष रूप से अंडा, मोंगरी मछली व बकरे की बलि दिये जाने की रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन किया जायेगा। 

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