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रायपुर में मिला मंकीपॉक्स का संदिग्ध मरीज, आम्बेडकर अस्पताल में भर्ती

रायपुर
छत्तीसगढ़ में मंकीपॉक्स महामारी का एक संदिग्ध मरीज मिला है जो राजधानी रायपुर के पुरानी बस्ती स्थित जैतूसाव मठ की संस्कृत पाठशाला का 13 वर्षीय छात्र है। उसके शरीर पर लाल दाने हैं और उसे बुखार भी है। मंकीपॉक्स के लक्षण देखकर उसे डॉ. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल (मेकाहारा) के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कर लिया गया है। मरीज के नमूने पुणे स्थित नेशनल वॉयरोलॉजी लैब को भेजे गए हैं। वहीं ऐतिहातन जैतूसाव मठ की संस्कृत पाठशाला के 19 छात्र को भी क्वारंटाइन कर दिया गया है।

बताया जा रहा है कि मूल रूप से कांकेर का रहने वाला यह 13 वर्षीय छात्र जैतूसाव मठ के छात्रावास में रहता है। तीन दिन पहले उसके शरीर पर लाल दाने दिखाई दिए। सोमवार को उसे जिला अस्पताल के चर्म रोग विभाग की ओपीडी में दिखाया गया। वहां मंकीपॉक्स संदिग्ध मानकर डॉक्टरों ने मेडिकल कॉलेज जाने को कहा। मंगलवार को उसे मेडिकल कॉलेज से संबद्ध डॉ. भीमराव आम्बेडकर अस्पताल की ओपीडी में दिखाया गया। यहां शुरूआती जांच के बाद डॉक्टरों ने बच्चे को रोक लिया। उसे आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया, इसकी जानकारी राज्य स्तरीय सर्विलेंस टीम को दी गई। उसके बाद छात्रावास में रह रहे शेष 19 बच्चों को भी क्वारंटाइन कर दिया गया है। उनकी सेहत पर नजर रखी जा रह है। महामारी के प्रोटोकाल के मुताबिक मरीज और उसके साथ के बच्चों के सैंपल को जांच के लिए नेशनल वॉयरोलाजी लैबोरेट्री भेजा गया है।

स्वास्थ्य सेवाओं में महामारी नियंत्रण विभाग के संचालक डॉ. सुभाष मिश्रा ने बताया कि अभी तक की जांच में सामने आया है कि बच्चे की कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं है। वह कहीं बाहर नहीं गया। किसी संदिग्ध से उसकी मुलाकात भी नहीं है। हॉस्टल में उसके किसी और साथी में ऐसे लक्षण नहीं मिले हैं। उन्होंने कहा कि यह स्किन इंफेक्शन भी हो सकता है। चर्म रोग के विशेषज्ञों के परामर्श पर स्किन इंफेक्शन की दवाएं दी जा रही है। बताया जा रहा है, उससे बच्चे को राहत मिली है। मंकीपॉक्स का संक्रमण देश में आ चुका है, ऐसे में कोई रिस्क नहीं ले सकते। सभी प्रोटोकाल का पालन किया जा रहा है।

डॉक्टरों का कहना है कि मंकीपॉक्स एक डबल-स्ट्रैंडेड डीएनए वायरस है जो पॉक्स विरिडे परिवार के आॅर्थोपॉक्स वायरस जीनस से संबंधित है। 1970 में कांगो के एक नौ साल के बच्चे में सबसे पहले यह वायरस मिला था। तब से पश्चिम अफ्रीका के कई देशों में इसे पाया जा चुका है। इसके लिए कई जानवरों की प्रजातियों को जिम्मेदार माना गया है। इन जानवरों में गिलहरी, गैम्बिया पाउच वाले चूहे, डर्मिस, बंदर आदि शामिल हैं।

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