विदेश

चीन में वैज्ञानिकों को मिला एक नया जीवाश्म 

सैन फ्रांसिस्को । चीन में वैज्ञानिको को एक नया जीवाश्म मिला है जिससे वे पक्षियों के उद्भव यात्रा के बारे में काफी हैरान रह गए हैं। पक्षियों के बारे में कहा जाता है कि वे डायनासोर के वंशज होते है। जो जीवाश्म विज्ञानी के द्वारा खोजा गया यह जीवाश्म 12 करोड़ साल पुराना है जिसका सिर डायनासोर और बाकी हिस्सा पक्षी की तरह है।
क्रेटोनाविस झुई नाम के इस जीव के जीवाश्म की खोपड़ी और पैर की पहली हड्डी बाकी सभी पक्षियों और उनके जीवाश्मों से बिलकुल ही  अलग है। यह खोज पक्षियों के उद्भव काल के दौरान उनकी आकृति कार्य और परिस्थितिकी में नाटकीय बदलाव का द्योतक है जिससे पक्षियों के शरीर को विशेष स्वरूप मिले थे। इस जीवाश्म की आकृति के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके हड्डी के ढांचे की कठोरता आदि से पता चलता है कि वे रेप्टर की तरह बर्ताव करता था। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि क्रिटेशियस काल वह नाजुक समय अंतराल था जब धरती के रीढधारी जीवों में विस्फोटक विविधता देखने को मिली थी। 
इसके अलावा वैज्ञानिकों ने खोपड़ी की कार्यों की भी जानकारी हासिल की और उन्होंने पाया कि क्रोटोनाविस की कंधे की हड्डी की आकृति किसी पक्षी से नहीं बल्कि टीरेक्स जैसे किसी डायनासोर की खोपड़ी की आकृति से ज्यादा मिलती जुलती है। इस जीवाश्म का अध्ययन चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस के इंस्टीट्यूट ऑफ वर्टीबरेट पेलिएओंटोलॉजी एंड पेलिएएन्थ्रोपोलॉजी के जीवाश्मविज्ञानियों ने उच्च विभेदन कम्प्यूटेड टोमोग्राफी स्कैनिंग तकनीक के जरिए किया था। उन्होंने डिजिटल तकनीक से चट्टान में से जीवाश्म की हड्डियों को निकाला और उसके बाद जीव की मूल आकृति का पुनर्निर्माण किया।इस अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ ली झीहेंग ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी।जीहेंग ने बताया कि पुरातन जीवों का अध्ययन बताता है कि क्रेटोनाविस जैसे बहुत सारे क्रिटेशियस पक्षी अपनी चोंच के ऊपरी हिस्से को निचले जबड़े की तुलना में स्वतंत्र रूप से नहीं हिला सकते थे। यह ऐसी विशेषता या क्षमता है जो पक्षियों में तमाम विविधताओं के बाद भी व्यापक तौर पर पाई जाती है।
शोधकर्ताओं का कहना है की पक्षियों में अपने पूर्वज डायनासोर से अलगाव और बदलाव की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा मीजोइक पक्षियों में दिखी थी और इसकी वजह से अपने भोजन की जरूरतों को पूरा करने की विरोधाभासी मांग रही होगी। पैर की हड्डियों में भी सबसे पहले बदलाव भी इसी डायनासोर पक्षी संक्रमण के दौर में हुआ था। शोधकर्ताओं ने पाया कि कंधे की हड्डी का यह काम उड़ान भरने के लिए बहुत जरूरी होता है और इससे स्थिरता और लचीलापन दोनों ही मिलते हैं। इसमें बदलाव थेरोपॉड-पक्षी के बीच में बदलाव के दौरान देखने को  मिला जिसके बाद बढ़ी हुई कंधे की हड्डी के कारण एक यांत्रिक लाभ यह मिलता है कि उससे मांसपेशियां घुमाने में मदद मिलती है।  
 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button